बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 - हिन्दी - कार्यालयी हिन्दी एवं कम्प्यूटर बीए सेमेस्टर-2 - हिन्दी - कार्यालयी हिन्दी एवं कम्प्यूटरसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 - हिन्दी - कार्यालयी हिन्दी एवं कम्प्यूटर
अध्याय - 7
कार्यालयी हिन्दी पत्राचार
पत्राचार
पत्र-लेखन एक कला है, जिसका दैनिक पत्राचार जीवन में अत्यधिक प्रयोग किया जाता है । साहित्य की नव - विधाओं में पत्र-लेखन को एक शैली माना गया है।
जैसे-जैसे मनुष्य ने अपने भावों तथा विचारों की अभिव्यक्ति के लिए भाषा एवं लिपि को विकसित किया, वैसे-वैसे उसने “अपने भाव, विचारों, इच्छाओं, निर्णयों को लिपिबद्ध ( लिखित रूप में) करके अपने प्रियजनों को भेजने का सिलसिला शुरू किया और जब यह सिलसिला पत्रों के माध्यम से शुरू हुआ तो इसे पत्र लेखन कहा गया । " पत्रों का प्रारम्भिक रूप क्योंकि भोजपत्रों पर मिलता है, इसीलिए 'पत्र' शब्द का प्रयोग सभी तरह के पत्रों के लिए रूढ़ हो गया। इन्हीं पत्रों पर परस्पर विचारों, इच्छाओं आदि का आदान-प्रदान होने लगा, इसी को 'पत्राचार' नाम दिया गया।
पत्राचार के प्रकार
पत्रों के वर्गीकरण के अनेक आधार हैं, जिनमें दो मुख्य आधार हैं-
(क) औपचारिकता के आधार पर पत्र - भेद,
(ख) सांस्थानिक आधार पर पत्र - भेद ।
(क) औपचारिकता के आधार पर पत्र-भेद
औपचारिकता के आधार पर पत्रों के दो भेद होते हैं-
1. औपचारिक पत्र,
2. अनौपचारिक पत्र ।
1. औपचारिक पत्र - जिन पत्रों को लिखते समय हमें अनेक औपचारिकताओं का ध्यान रखना पड़ता है, उन्हें औपचारिक पत्र कहते हैं।
सरकारी, अर्द्ध-सरकारी, गैर-सरकारी और व्यावसायिक या कार्यालयी पत्र औपचारिक ही होते हैं। इनकी भाषा अनौपचारिक पत्रों की भाषा से सर्वथा भिन्न और निश्चित होती है। ये एक निश्चित प्रारूप में लिखे जाते हैं। प्रार्थना-पत्र, आवेदन-पत्र, शिकायती पत्र सम्पादकीय पत्र, व्यावसायिक पत्र और औपचारिक निमन्त्रण पत्र इसी श्रेणी में आते हैं।
औपचारिक पत्रों के प्रकार — औपचारिक पत्रों के मुख्य भेद निम्नलिखित हैं-
(अ) प्रार्थना-पत्र अथवा आवेदन-पत्र,
(ब) अव्यावसायिक पत्र,
(स) व्यावसायिक पत्र,
(द) कार्यालय पत्र |
2. अनौपचारिक पत्र - परिवार के सदस्यों, सगे-सम्बन्धियों, मित्रों व परिचितों को अपना समाचार देने में किसी औपचारिकता की जरूरत नहीं होती है, इसलिए इन्हें लिखे जाने वाले पत्र अनौपचारिक पत्र कहलाते हैं। इन लोगों के साथ हमारे घनिष्ठ व आत्मीय सम्बन्ध होते हैं, इसलिए इन पत्रों को निजी या व्यक्तिगत पत्र भी कहते हैं। आत्मीयता की भावना इन पत्रों की विशेषता होती है। इनकी भाषा भी अनौपचारिक होती है। बधाई, निमन्त्रण, संवेदना - पत्र आदि इसी श्रेणी में आते हैं।
प्रार्थना-पत्र अथवा आवेदन-पत्र का स्वरूप अथवा गुण
प्रार्थना-पत्र अथवा आवेदन-पत्र का स्वरूप अत्यन्त व्यवस्थित होता है। इसमें सब बातें निश्चित होती हैं और उनका स्थान भी पहले से निश्चित होता है। इसके मुख्य गुण इस प्रकार हैं-
(क) संक्षिप्त - आवेदन पत्र अत्यन्त संक्षिप्त होते हैं। इनमें केवल काम से सम्बन्धित बातें होती हैं, जिन्हें बिन्दुवार अंकित किया जाता है।
(ख) तथ्यात्मक - प्रार्थना अथवा आवेदन-पत्रों में तथ्यात्मक बातों को ही सम्मिलित किया जाता है। ये तथ्य पूर्णतया संवैधानिक और सही होते हैं। तथ्यों की पुष्टि के लिए प्रमाण-पत्रों का सन्दर्भ दिया गया होता है।
(ग) पूर्ण- -आवेदन-पत्र अपने आपमें पूर्ण होते हैं। इनमें कोई भी तथ्य अपूर्ण अथवा ऐसा नहीं होता, जिसके लिए किसी अन्य प्रमाण अथवा तथ्य की अपेक्षा हो ।
(घ) शिष्ट और सधी भाषा - सभी प्रार्थना-पत्रों / आवेदन-पत्रों की एक शिष्ट और सधी हुई भाषा होती है। उसमें न कोई अनुग्रह होता है और न कोई भावात्मक अपील।
प्रार्थना-पत्रों अथवा आवेदन-पत्रों की रूपरेखा
प्रार्थना-पत्रों/आवेदन पत्रों का जीवन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसमें औपचारिक- पत्रों की लगभग सभी औपचारिकताएँ सम्मिलित होती हैं; अतः उनकी संक्षिप्त रूपरेखा का परिचय इस प्रकार है-
(क) आवेदन-पत्र का शीर्षक/कार्यालय या विभाग का नाम-पत्र के ऊपरी भाग में आवेदन-पत्र का शीर्षक आदि लिखा जाता है। अन्य औपचारिक पत्रों में आमतौर पर कार्यालय या विभाग का नाम पहले से छपा होता है। (लेटर हैड) इसमें पता, टेलीफोन, फैक्स नम्बर आदि सभी मुद्रित होते हैं।
(ख) विज्ञप्ति संख्या - पत्र के बायीं ओर आवश्यकतानुसार विज्ञप्ति संख्या लिखी जाती है। एक से अधिक आवेदनों के सन्दर्भ में विज्ञप्ति संख्या पत्राचार के दौरान पुराने सन्दर्भों को देखने में मदद करती है।
(ग) प्रेषक का नाम व पद – पत्र लिखने वाले का नाम पद दायीं ओर लिखा जाता है।
(घ) दिनांक या तिथि-प्रेषक के नाम के नीचे ही तिथि को अंकित किया जाता है। (ङ) प्रेषिती या प्राप्तकर्त्ता का पद व पता- दिनांक के नीचे थोड़ा स्थान छोड़कर बायीं ओर प्राप्तकर्त्ता का पद व पता लिखा जाता है।
(च) विषय – प्रार्थना-पत्रों या आवेदन-पत्रों में विषय का उल्लेख अवश्य रहता है।
(छ) सम्बोधन - विषय के बाद बायीं ओर ही सम्बोधन / प्रशस्ति लिखा जाता है। (प्रार्थना-पत्रों में अभिवादन नहीं लिखा जाता ) ।
(ज) कलेवर या विषय-वस्तु — यह पत्र का मुख्य भाग होता है, जिसमें आवश्यकतानुसार औपचारिक भाषा में कहीं जाने वाली बातों को अनुच्छेदों में या बिन्दुवार लिखा जाता है।
(झ) समापन अथवा अन्त- समापन के अन्तर्गत प्रार्थना-पत्र में मुख्य विषय के पालन या निष्ठा के सन्दर्भ में आश्वस्त किया जाता है। प्रार्थना पत्रों या आवेदन-पत्रों के कुछ समापन इस प्रकार हो सकते हैं-
1. मैं शपथ पूर्वक कहता / कहती हूँ कि मेरे संज्ञान में दी गई उपर्युक्त सभी जानकारियाँ सही हैं। इनमें कुछ भी छिपाया नहीं गया है। यदि इनमें कोई गलती पाई जाती है तो उसके लिए मैं स्वयं जिम्मेदार होऊँगा / होऊँगी। गलत या असत्य पाए जाने पर मेरी उम्मीदवारी निरस्त किए जाने पर मुझे कोई आपत्ति न होगी ।
2. मेरी जानकारी में सभी तथ्य सत्य और सही हैं। इनमें कुछ भी छिपाया नहीं गया है। गलत या असत्य पाए जाने पर मैं अपने विरुद्ध की जाने वाली प्रत्येक विधिक कार्यवाही के लिए प्रस्तुत रहूँगा / रहूँगी ।
3. मैं आपको विश्वास दिलाता/दिलाती हूँ कि मैं अपने कार्य को पूर्ण लगन एवं निष्ठा से करूँगा/करूँगी और भविष्य में कभी शिकायत का अवसर नहीं दूँगा / दूँगी। सेवा का अवसर प्रदान कर कृतार्थ कीजिएगा ।
4. सहायता / सुविधा प्रदान करने का कष्ट करें।
(ञ) स्वनिर्देश - पत्र के दायीं ओर ही कलेवर - समाप्ति के बाद नीचे स्वनिर्देश लिखा जाता है।
(ट) प्रेषक के हस्ताक्षर – स्वनिर्देश के नीचे प्रेषक के हस्ताक्षर होते हैं।
(ठ) संलग्नक – आवेदन पत्र में संलग्न प्रपत्रों का उल्लेख किया जाता है। इसके लिए पत्र में नीचे बायीं ओर 'संलग्नक' लिखकर क्रम से प्रमाण-पत्र, फीस जमा की रसीद, बैंक ड्राफ्ट, चैक आदि। प्रपत्रों का उल्लेख करते हुए उन्हें पत्र के साथ संलग्न करना पड़ता है; जैसे-
संलग्नक - 1. कक्षा-10 परीक्षा के प्रमाण पत्र की छाया प्रतिलिपि ।
संलग्नक – 2. फीस की रसीद की छाया प्रतिलिपि ।
सरकारी पत्र से आशय
जब सरकार को कोई आदेश जारी करना होता है तो वह सम्बन्धित विभाग/मन्त्रालय के सक्षम अधिकारी (मुख्य सचिव / उपसचिव) को उसे जारी करने का आदेश देती है, तब वह अधिकारी उसे सरकार की ओर से सम्बन्धित विभागों के मुखियाओं को जारी करता है। इसी पत्र को सरकारी पत्र कहते हैं। यही एक ऐसा पत्र है, जो पूर्व की भाँति आज भी प्रचलित है और आगे भी प्रचलित रहेगा। सरकारी पत्र केन्द्र सरकार अथवा राज्य सरकार के मन्त्रालयों द्वारा विदेशी सरकारों, अन्य राज्य सरकारों, संलग्न तथा अधीनस्थ कार्यालयों, संघ लोक सेवा आयोग जैसे अन्य कार्यालयों, संगठनों (सार्वजनिक अथवा सरकारी), सार्वजनिक निकायों तथा व्यक्तियों के साथ सम्पर्क स्थापन के लिए लिखे जाते हैं।
सरकारी पत्र वस्तुत: कार्यालीय पत्र का ही एक प्रकार है, इसलिए इसे ही भ्रमवश कार्यालीय पत्र ( ऑफिशियल पत्र) मान लिया जाता है। सरकारी पत्र के सन्दर्भ में एक बात यह भी ध्यान रखनी चाहिए कि भारत सरकार के विभिन्न मन्त्रालयों अथवा राज्य सरकार के विभिन्न मन्त्रालयों में आपस में पत्र-व्यवहार के लिए सरकारी पत्र नहीं लिखे जाते ।
स्मरण रखने योग्य महत्वपूर्ण तथ्य
सरकारी पत्र के महत्त्वपूर्ण अंग
सरकारी पत्र के अनेक महत्त्वपूर्ण अंग होते हैं, इनके अभाव में पत्र को अपूर्ण अथवा त्रुटिपूर्ण माना जाता है। इसलिए सरकारी पत्र में इन सब अंगों का यथोचित समावेश होना चाहिए। ये महत्त्वपूर्ण मुख्य अंग इस प्रकार हैं-
(क) पत्र संख्या - सबसे ऊपर पत्र की संख्या लिखी होती है, किन्तु आजकल यह संख्या मन्त्रालय के नाम के नीचे बायीं ओर लिखी जाने लगी है।
(ख) केन्द्र / राज्य सरकार और मन्त्रालय का नाम - पत्र संख्या के नीचे भारत सरकार और उस मन्त्रालय का नाम लिखा जाता है, जिसकी ओर से वह पत्र भेजा जा रहा है। अनेक बार यह सामग्री कागज पर पहले से छपी भी होती है।
(ग) प्रेषक - प्रेषक का नाम और पद पत्र के बायीं ओर मन्त्रालय के नाम के नीचे लिखा जाता है।
(घ) प्रेषिती - जिस व्यक्ति या अधिकारी के पास वह पत्र भेजा जा रहा है, उसका नाम और पदनाम विधि के अनुसार लिखा जाता है।
(ङ) प्रेषक का स्थान और दिनांक - प्रेषिती के नीचे दायीं ओर प्रेषक का स्थान और दिनांक लिखा जाता है।
(च) पत्र का विषय-पत्र के मध्य में संक्षेप में विषय लिखा जाता है।
(छ) सम्बोधन - व्यक्ति और अधिकारी विशेष के अनुसार महोदय/ महोदया, प्रिय महानुभाव आदि सम्बोधन लिखा जाता है।
(ज) पत्र का कलेवर - पत्र के माध्यम से आदेश दिया जाना होता है, वह कलेवर के अन्तर्गत ही लिखा जाता है।
(झ) स्वनिर्देश - स्वनिर्देश के अन्तर्गत भवदीय/भवदीया आदि लिखा जाता है। इसे पत्र के दायीं ओर कलेवर के नीचे लिखा जाता है।
(ञ) प्रेषक के हस्ताक्षर — स्वनिर्देश के नीचे प्रेषक अपने हस्ताक्षर करता है और उसके नीचे उसका पूरा नाम एवं पदनाम लिखा जाता है।
(ट) पृष्ठांकन - यदि पत्र को उसके मूलरूप में आगे किसी को भेजना होता है तो पत्र के अन्त में पृष्ठांकन के रूप में वांछित टिप्पणी लिखी जाती है।
अर्द्धसरकारी पत्र के अंग / भाग
अर्द्धसरकारी पत्र निम्नलिखित ढंग से लिखा जाता है-
1. पत्र संख्या - सर्वप्रथम पत्र की पत्र - संख्या और क्रमांक लिखा जाता है।
2. सरकार तथा कार्यालय - पत्र संख्या के पश्चात् सरकार तथा सम्बन्धित कार्यालय का नाम अंकित किया जाता है।
3. प्रेषक - पत्र भेजने वाले अधिकारी का नाम तथा पद अंकित किया जाता है।
4. सम्बोधन - सम्बोधन में प्रिय श्री ......./प्रिय महोदय/ नाम का संक्षिप्त अंश-जो परिचित अधिकारी सामान्यतः बोलचाल में प्रयुक्त करते हैं।
5. विषय / सन्दर्भ - केवल विशेष परिस्थितियों में ही संक्षेप में विषय या सन्दर्भ का उल्लेख किया जाता है, सामान्यत: नहीं।
6. पत्र का मुख्य भाग — इस तरह के पत्र में तीन भाग होते हैं- प्रारम्भ, मध्य और अन्त।
7. शुभकामनाओं सहित - पत्र के अन्त में 'शुभकामनाओं सहित' या 'शेष शुभ' आदि शब्द भी लिखे जाते हैं।
8. हस्ताक्षर - पत्र के दायीं ओर घनिष्ठता के अनुसार आपका ही / आपका विश्वस्त और उसके नीचे प्रेषक के हस्ताक्षर अंकित होते हैं।
9. प्रेषिती - अन्त में बायीं ओर प्रेषिती का नाम, पद, विभाग आदि का नाम देते हुए पूरा पता अंकित किया जाता है।
नोट- अर्द्ध-सरकारी पत्र लिखते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि लाल रंग से मुद्रित पैड केवल संयुक्त सचिव (भारत सरकार) या समकक्ष अथवा उनसे उच्च अधिकारी ही प्रयोग में लाते हैं। पत्र यदि गोपनीय ढंग का हो तो गोपनीय शब्द लिफाफे के ऊपर अंकित किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में लिफाफे को सील कर देना भी ठीक होता है ।
पत्र-लेखन के नियम
पत्र लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें या पत्र-लेखन के सामान्य नियमों का विवरण यहाँ प्रस्तुत है। इनका अनुपालन करके किसी पत्र को एक कलाकृति की भाँति सँवारा जा सकता है-
1. उद्देश्य - पत्र लिखते समय पत्र-लेखन के उद्देश्य, तात्पर्य, प्रयोजन तथा पत्र पाने वाले का उससे सम्बन्ध ध्यान में रखना चाहिए।
2. मानसिक स्थिति - पत्र शान्तं मन, स्थिर चित्त से लिखना चाहिए अन्यथा भावुकता. में बहकर पत्र में गलती हो जाने का भय रहता है।
3. स्पष्ट भाषा – हमेशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पत्र की भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए। उसमें कहावतों- मुहावरों, ग्रामीण और क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग कम किया जाना चाहिए, अन्यथा अर्थ का अनर्थ हो जाने का खतरा रहता है।
4. पुनरावृत्ति नहीं — पत्र में व्यर्थ की पुनरावृत्ति से बचना चाहिए। इससे पत्र का महत्त्व कम हो जाता है। पत्र को पढ़ने वाला भी पुनरावृत्ति से उकता जाता है।
5. प्रारम्भ - पत्र का प्रारम्भ करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसके दायीं ओर तिथि तथा स्थान लिखना चाहिए, आवेदन-पत्रों में तिथि अन्त में बायीं ओर लिखनी चाहिए।
6. पुनश्च - पत्र - समाप्ति के बाद यदि कुछ लिखना शेष रह गया हो तो उस भाग को 'पुनश्च' करके लिख देना चाहिए।
7. धार्मिक शब्दों का प्रयोग नहीं - पत्र प्रारम्भ करते समय कभी भी धार्मिक शब्दों “ओ३म्” “श्री गणेशाय नमः”, “श्री लक्ष्म्यै नमः”, “786” आदि शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
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- अध्याय - 1 कार्यालयी हिन्दी का स्वरूप, उद्देश्य एवं क्षेत्र
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- अध्याय - 2 कार्यालयी हिन्दी में प्रयुक्त पारिभाषिक शब्दावली
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- अध्याय - 3 संक्षेपण
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- अध्याय - 4 पल्लवन
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- अध्याय - 5 प्रारूपण
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- अध्याय - 6 टिप्पण
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- अध्याय - 7 कार्यालयी हिन्दी पत्राचार
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- अध्याय - 8 हिन्दी भाषा और संगणक (कम्प्यूटर)
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- उत्तरमाला
- अध्याय - 9 संगणक में हिन्दी का ई-लेखन
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- अध्याय - 10 हिन्दी और सूचना प्रौद्योगिकी
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- अध्याय - 11 भाषा प्रौद्योगिकी और हिन्दी
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